उनका नर्क नाबदान के पास पहुंचकर उनकी कांपती टांगे ठिठक गयीं. गली में दूर तक पानी इकट्ठा हो गया था. बरसात थमे काफी देर हो चुकी थी, लेकिन छत और आंगन का पानी भक-भक की आवाज के साथ अभी भी नाबदान की मोरी के रास्ते गली में आ रहा था. उन्होंने हाथ के डंडे से गली में रखी ईंटों को टटोला, जो पानी में छुप चुकी थीं. किसी ईंट से डंडा दो बार टकराया, लेकिन वे ईंटों की स्थिति का सही अनुमान न लगा सकीं. किंर्तव्यविमूढ़-सी वे खड़ी रहीं सोचती हुई -- 'कैसे पार कर सकेगीं उस कीचड़ सने बदबूदार