खाली मकान जयश्री रॉय इतनी सारी चीजें- महंगी घड़ी, परफ्यूम, साड़ियां, सुगर-ब्लड प्रेशर जांचने के यंत्र... कितने सारे महंगे उपहार ले आया है परिमल उसके लिये! अपराजिता इन्हें परे हटा कर खिड़की के पास आ खड़ी होती है- अब इन सामानों से भरपाई नहीं होती उस कमी की जो एक खोह की तरह दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है उसके अंदर! प्यार का विकल्प कुछ नहीं होता, ये सामान तो कभी नहीं! काश इन चीज़ों को परे रख कर कभी परिमल उसके साथ थोड़ी देर पहले की तरह हंस-बोल लेता! कितना कुछ जमा रह गया है उसके अंदर