मृत्यु का वरण

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वो मृत्यु से डरते थे, वैसे तो यह डर सभी के मन में होता है, लेकिन एक वैरागी के मुख से यह बात सुन कर शायद कुछ अजीब लगे। अमृत्यानंद जी ने 10 वर्ष की आयु में ही वैराग्य ले लिया था। और पिछले 40 वर्षों से ज्ञान-ध्यान में लिप्त थे। आज 50 वर्ष की आयु होने के पश्चात् और इतने वर्षों की ज्ञान चर्चा के पश्चात भी उन्हें मृत्यु से डर! अति आश्चर्य है। आज आश्रम में यही चर्चा हो रही है। अमृत्यानंद जी के वचन ऐसे होते कि हर कोई मन्त्र-मुग्ध हो जाता, उनकी वाणी में जैसे सरस्वती