कभी अलविदा न कहना - 10

(11)
  • 7.3k
  • 1
  • 2k

कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 10 अब रविवार की सुबह का मुझे इंतज़ार रहता था। मैं आज देर तक सोना चाहती थी। कितनी अजीब बात है न कि जब रोज़ जल्दी उठकर जाना होता था, तो नींद से लड़ाई होती थी और आज जब मैं नींद से दोस्ती करना चाह रही थी तो वह रूठ कर बैठी थी। पूरी रात यूँ ही कच्ची पक्की नींद में गुजरी थी। एक रात में इतने सपने... शायद पहली बार ही था जो मैं सपनों में भागते दौड़ते इतनी थक चुकी थी कि बिस्तर से उठना ही नहीं चाह रही थी। शरीर विश्रांत था