कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 7 आज की भोर बहुत सुहानी लग रही थी। आज मुझे न तो साड़ी पहनने का डर, न यात्रा की मुश्किल और न ही वह पसीने की बदबू का ख्याल था... आज तो मैं सोच रही थी कि कौन सी साड़ी मुझ पर ज्यादा जँचेगी... और... और सुनील से मिलने पर मैं कैसे रियेक्ट करूँगी या कि वह मुझे कैसे देखेगा और क्या बोलेगा। "वाह दीदी आज तो बड़ी जल्दी तैयार हो गयी... हूं.. हूं... सब समझ रही हूँ... आज मैं भी चलती हूँ आप के साथ..." अंशु मुझे छेड़ने का कोई मौका कभी नहीं