कभी अलविदा न कहना डॉ वन्दना गुप्ता 5 उस एक पल मेरे मन में पता नहीं कितने भाव आए और गए... इंतज़ार खत्म होने की खुशी, बूढ़े अंकल को सीट देने पर खुद पर ही गुस्सा और सुनील के जल्दी आने की वजह जानने की उत्सुकता…. हाँ जल्दी आने की क्योंकि बैंक का वर्किंग टाइम अभी चल रहा था। "सॉरी विशु! लेट हो गया, माफ कर दो.." उसने मेरे सामने होंठों को तिरछा कर एक आँख झपकायी और कान पकड़ लिए। एक पल को मैं भी भूल गयी कि हम बस में हैं, मैंने गुस्सा होने की एक्टिंग करते हुए खिड़की की