अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (1) प्रेम और विरह का स्वरुपप्रेम ----एक दिव्य अनुभूति --------कोई प्रगट स्वरुप नही,कोई आकार नही मगर फिर भी सर्व्यापक ।प्रेम के बिना न संसार है न भगवान । प्रेम ही खुदा है और खुदा ही प्रेम है --------सत्य है।प्रेम का सौन्दर्य क्या है ------विरह । प्रेम का अनोखा अद्भुत स्वरुप विरह(वियोग)है ।बिना विरह के प्रेम अधूरा है और बिना प्रेम के विरह नही हो सकता ।दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । एक के बिना दूसरे की गति नही ।प्रेम के वृक्ष पर विकसित वो फल है विरह जिसका सौंदर्यदिन-ब-दिन बढ़ता ही है ।