अपना पता संशोधित रात के निपट सन्नाटे में अपने घर के सामने खड़ा हूं, मगर अंदर जाने से पहले न जाने क्यों ठिठक गया हूँ। एक संक्षिप्त-से क्षण में जी चाहता है, उल्टे पैर लौट जाऊँ। क्यों बार-बार अपने ही जख्म की परतें खुरचने यहाँ चला आता हूँ! मगर इस सोच से परे द