कुबेर - 9

  • 7k
  • 2k

कुबेर डॉ. हंसा दीप 9 स्कूल की यादें धन्नू के लिए एक दु:स्वप्न की तरह थीं लेकिन बुनियाद वहीं रखी गयी थी। फीस के पैसों की उगाही बार-बार उसके ज़ेहन को पढ़ाई-लिखाई से दूर रहने को मज़बूर करती थी। स्कूल में दूसरे बच्चे जब उसकी ओर हिकारत से देखते तो उसका ख़ून खौल जाता था। सोचता कि अगर कैसे भी करके फीस भरने के पैसे मिल जाएँ तो सबके सामने उनकी मेज़ पर ले जाकर पटक दे। उसका गुस्सा उन नेताजी पर सबसे ज़्यादा था जो उसे इस स्थिति में छोड़ने के ज़िम्मेदार थे। इतनी उदारता दिखाने की कोई ज़रूरत