कुबेर डॉ. हंसा दीप 7 दिन निकलते रहे। किशोर था वह। उसे अपनी सही उम्र पता नहीं थी, न ही अपना जन्म दिन पता था। पता भी कैसे होता क्योंकि जहाँ वह पैदा हुआ था वहाँ जन्म सिर्फ एक बार नहीं होता, बार-बार जन्म होता था। कई बार एक दिन-दो दिन भूखे रहने के बाद खाना मिलता तो उस दिन लगता कि आज नया जन्म हुआ है। हर निवाले के साथ जान में जान आती। उसके गाँव के घर-घर में ऐसे कई बार जन्म होते थे, बच्चों के भी और बड़ों के भी। हाँ, स्कूल में दाखिले के समय अंदाज़