कुबेर डॉ. हंसा दीप 5 वह वहीं बैठ गया पत्थरों के टीले पर। एकटक ताकता रहा शून्य में। स्तब्ध आँखें झपकना भी भूल गयी थीं। उसके जाने के चार महीने के अंतराल से माँ-बाबूजी दोनों चले गए थे। धन्नू इतना व्यथित हुआ कि आँखों से दो आँसू भी नहीं बहे लेकिन भीतर बहुत कुछ बहता रहा। दु:ख की चरम सीमा क्रोध को जन्म दे ही देती है, वही हुआ धन्नू के साथ। इतना दु:खी था कि अपनी पीड़ा को सम्हाल नहीं पाया। ख़ुद पर गुस्सा था, बहुत ज़्यादा। एक पत्थर हाथ में और दूसरा ज़मीन पर। उस पत्थर को कूटता