दरमियाना भाग - ८ मैंने हाथ पकड़ कर उसे उठाया और अपने पास सोफे पर बैठा लिया । धीरे-से उसके सिर पर हाथ फेरा और फिर कंधे को थपथपा दिया । उसने अपनी डबडबाई पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा था । वही-गहरी, बड़ी, झील-सी आँखे और उसी तरह भरी हुई । किन्तु इस बार उसने मेरे स्पर्श को दूसरे ही अर्थों में स्वीकार किया था । मैं और मधुर जब रूठ जाते, तो इसी तरह मैं उसके कंधे को सहला देता । मैं अक्सर कहा करता कि स्पर्श एक बहुत अच्छी थेरेपी है... एक बहुत अच्छा उपचार । उसने