दरमियाना - 4

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दरमियाना भाग - ४ धीरे-धीरे क्षण बीते और बीते हुए क्षण, महीनों से होते हुए... वर्षो में बदल गए। हमारा मकान भी बदल गया था। पिता जी की तरक्की के बाद एक दूसरी कालोनी में बड़ा घर मिल गया था। मैं भी बहुत बदल गया था। उस दौरान यह भी तो नहीं सोच पाया कि तारा अब कैसी होगी ! होगी भी, या... या उसकी हथेलियाँ थक कर चुप हो चुकी होंगी ? उसका लाड़-प्यार या गालियाँ, बनारसी पत्तों की थैली या तालियाँ—इतने बर्षों में मुझे कुछ भी याद नहीं रहा था। अचानक एक दिन जब मैं अपनी पत्नी के