सरहद के इस पार खपरैल तड़ातड़ कच्चे आँगन में गिरकर टूट रही थी। मगर किसी में हिम्मत नहीं थी कि आँगन में निकलकर या फिर दालान से ही रेहान को आवाज़ देकर मना करता। अम्मा को दौरा पड़ गया था। हाथ-पैर ऐंठ गए थे। मुँह से झाग निकल रहा था। उनके पास सिप़फऱ् एक ही अभिव्यक्ति रह गई थी और वह थी गिरकर बेहोश हो जाना। फ्मुसीबत जब आती है तो चारों तरप़फ़ से आती है!य् दद्दा ने अम्मा का हाथ सहलाते हुए कहा।फ्रोने से काम नहीं चलेगा लड़की। पीछे की खिड़की से किसी को पुकारो। शायद शकूर घर पर