राजनीतिक होली हर साल की तरह इस बार भी माघ के बाद फाल्गुन लग चुका था. मौसम का मिज़ाज क्या बदला राजनीतिक मिजाज भी बदल गया पर अपना मिज़ाज जैसा था वैसा ही रहा बिलकुल विपक्ष की तरह. जैसे-जैसे रात छोटी हुई अपनी नींद भी बड़ी होने लगी. रात और नींद का रिश्ता भी चोली दामन जैसा ही है. मैं नेताओं की तरह बिस्तर में चीर निद्रा में लीन थी और ख्याली पुलाव नहीं ख्वाब में पुलाव देख रही थी. तभी अम्मी ने मेरे सिर से चादर हटाते हुए बड़बड़ायी, एक यह मोहतरमा हैं कि चैन की नींद सो रही