अगले दो दिन तैयरियों में बीते. छोटा-बड़ा तमाम सामान सहेजा गया. अनाज की बोरियां भरी गयीं. मसाले, अचार, पापड़, बड़ियां ....सब कुछ. ज़रूरी बर्तन और बिस्तरों का पुलिंदा बनाया गया. सुमित्रा जी सब देख रही थीं चुपचाप. अन्दर ही अन्दर घर से दूर जाने से घबरा भी रही थीं. कैसे सम्भालेंगीं बच्चों और घर को! हमेशा भरे-पूरे घर में रहने की आदी सुमित्रा जी का मन, अकेलेपन की कल्पना से ही दहशत से भरा जा रहा था. लेकिन अब बड़े दादा का आदेश था तो जाना तो पड़ेगा ही. दो दिन बाद जब सामान ट्रैक्टर में लादा जा रहा था