सत्या - 34 (अंतिम भाग)

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सत्या 34 घड़ी में पाँच बजकर बीस मिनट हो रहे थे. बड़ा बाबू की मेज़ पर संजय बैठा अपने सामान समेट रहा था. आधे से ज़्यादा लोग जा चुके थे. सत्या ने भी अपनी फाईलें समेटीं. जब अंतिम कर्मचारी भी चला गया तो सत्या के उदास चेहरे को देखकर संजय ने कहा, “तेरी उदासी हमसे देखी नहीं जाती.” सत्या ने ग़मगीन स्वर में कहा, “अब पता चल रहा है कि बीस साल की सज़ा काटकर कोई मुक्त नहीं हो सकता. उम्रकैद का मतलब होता है ज़िंदगी भर की सज़ा.” संजय ने कहा, “मीरा जी ठीक ही कह रही थीं. अब