कौन दिलों की जाने! बयालीस तेईस मार्च को आलोक, रानी और प्रोफेसर गुप्ता (गवाह के रूप में) वकील साहब के साथ एडीएम कार्यालय गये। जब उनकी फाईल एडीएम साहब के समक्ष प्रस्तुत की गई तो उन्होंने औपचारिक दो—चार बातें पूछकर आलोक व रानी को अपने सामने हस्ताक्षर करने को कहा तथा प्रोफेसर गुप्ता के गवाह के रूप में हस्ताक्षर करवा कर मैरिज़ रजिस्ट्रेशन की कार्रवाई पूरी कर दी। कार्रवाई पूरी होने पर एडीएम साहब ने मैरिज़ सर्टिफिकेट आलोक को देते हुए कहा — ‘प्रोफेसर आलोक, जीवन के इस पड़ाव पर अकेलापन सबसे अधिक कष्टदायी होता है। ऐसे में साथी का