कौन दिलों की जाने! सेंतीस रानी को फ्लैट में रहते हुए लगभग पाँच महीने हो गये थे। यहाँ रहने की समयावधि पूरी होने की अथवा कह लीजिये कि यहाँ के अकेलेपन से छुटकारा पाने की वह उसी तीव्रता से प्रतीक्षा कर रही थी जैसे दिन में निकले हुए चन्द्रमा का निस्तेज हो चुका प्रकाश अपने अस्तित्व को प्रकट करने के लिये सँध्याकाल की आतुरता से प्रतीक्षा करता है। अपनी इसी मनःस्थिति के चलते रानी ने जनवरी के आखिरी सप्ताह में रमेश को फोन किया। हैलो, नमस्ते के बाद पूछा — ‘रमेश जी, कोर्ट में 13 फरवरी की तारीख है ना?'