कौन दिलों की जाने! बत्तीस रविवार को सुबह रमेश बाथरूम से स्नान करके निकला ही था कि विनय का फोन आया। विनय पूछ रहा था — ‘जीजा जी, कब तक आ रहे हो?' ‘मेरा तो आने का कोई प्रोग्राम नहीं है।' ‘दीदी तो कह रही थीं कि आप आज आओगे।' ‘रानी ने मुझे आने के लिये कहा जरूर था, लेकिन मैंने कहा था कि पक्का नहीं कह सकता। देखूँगा। माँ कैसी हैं?' ‘माँ अब काफी ठीक हैं, बल्कि कह सकते हैं कि दीदी के आने से माँ को बहुत बड़ा सहारा मिल गया है। आप कहें तो दीदी हफ्ता—दस दिन