कौन दिलों की जाने! तीस आलोक ने रिसेप्शन पर रूम—सम्बन्धी इन्कवारी की और बुकिंग फॉर्मेलिटीज़ पूरी कर रूम में पहुँचा। फ्रैश होकर चाय बनाई। आधा—एक घंटा सुस्ताने के बाद वह रूम बन्द करके घूमने के लिये निकल पड़ा। घूमता—फिरता धोबी बाज़ार में जैन डिपार्टमेंटल स्टोर पर जा पहुँचा। प्रदीप पारदर्शी केबिन में बढ़िया मेज़—कुर्सी पर विराजमान था। उसके सामने टेबल पर एलसीडी स्क्रीन वाला लैपटॉप खुला था। प्रदीप चाहे आलोक का हमउम्र था, किन्तु उसका शरीर ढल चुका था। चेहरे पर उभर आई झुर्रियों की वजह से वह आलोक से आठ—दस वर्ष बड़ा लगता था। आलोक ने केबिन का दरवाज़ा