देस बिराना किस्सा इकतीस मेरा वहां यह तीसरा दिन था। ये तीनों दिन वहां मैंने एक मेहमान की तरह काटे थे। जब घर के मालिक की हालत ही मेहमान जैसी हो तो मैं भला कैसे सहज रह सकती थी। हम आम तौर पर इस दौरान चुप ही रहे थे। इन तीन दिनों में मैंने उससे कई बार कहा था, चले शो रूम देखने, वकील से मिलने या विजय के यहां शो रूम के पेपर्स देखने लेकिन वह लगातार एक या दूसरे बहाने से टालता रहा। मैं तीन दिन से उसकी लंतरानियां सुनते सुनते तंग आ चुकी थी। हम इस दौरान