देस बिराना किस्त अठाइस धीरे धीरे अंधेरे में उनकी आवाज उभरती है। - मेरा घर का नाम निक्की है। तुम भी मुझे इस नाम से बुला सकते हो। जब से यहां आयी हूं, किसी ने भी मुझे इस नाम से नहीं पुकारा। एक बार मुझे निक्की कह कर बुलाओ प्लीज़ .. मैं बारी-बारी उनके दोनों कानों में हौले से निक्की कहता हूं और उनके दोनों कान चूम लेता हूं। निक्की खुश हो कर मेरे होंठ चूम लेती है। - हां तो मैं अपने बचपन के बारे में बता रही थी। - मेरे बचपन का ज्यादातर हिस्सा गुरदासपुर में बीता। पापा