दो अजनबी और वो आवाज़ - 10

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दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-10 वैसे, मन तो मेरा भी अभी यही हो रहा है, कि मैं भी कहीं जाकर मर जाऊँ। लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी। मैं इतनी कमजोर लड़की नहीं हूँ। सोचते-सोचते मैं वापस उस घर के निकट पहुँच जाती हूँ। जहां से में चली थी। कॉफी की वही मनमोहक महक मेरी साँसों में एक आशा की किरण सी जागा देती है। मैं भागकर उस घर में जाती हूँ और फिर एक बार (उस आवाज) को पुकारती हूँ। लेकिन इस बार भी, मुझे सामने से कोई जवाब नहीं आता। मैं वही सीढ़ियों पर बैठकर बे इंतहा रोने