दो अजनबी और वो आवाज़ - 9

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दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-9 एक पल को मेरा भी मन किया कि मैं अपनी चाय छोड़कर, वहाँ जाकर कॉफी पी आऊँ। फिर दूजे ही पल यह ख्याल आया कि एक तो मेरे पास पहले से ही पैसे नहीं है, दूजा जिसका घर है उसके घर में चीजे यूं बर्बाद करना भी तो ठीक नहीं लगता। भले ही वह मामूली सी चाय ही क्यूँ न हो। ऐसा सोचकर मैं वापस अंदर जाकर अपनी चाय का कप अपने हाथों में लेकर चाय पीना शुरू कर देती हूँ। मेरी चाय अब तक ठंडी हो चुकी है। मगर मैंने उसे नज़र अंदाज़