दो अजनबी और वो आवाज़ - 7

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दो अजनबी और वो आवाज़ भाग-7 कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। पर यह क्या, जिस आग की तलाश में, मैं मर-मर के यहाँ तक पहुंची थी, वह आग तो ठंडी हो चुकी है। अब मेरा क्या होगा। मुझे ऐसा लग रहा था कि आज तो मेरी मौत पक्की है। सुबह होने तक निश्चित ही मैं ठंड से मर चुकी होंगी। किन्तु लकड़ियों में से हल्का-हल्का धुआँ अब भी निकल रहा है। मैं उस धुए से अपने हाथों को गरम करने कि नाकाम कोशिश करने लगती हूँ। मन में बहुत इच्छा है कि कहीं से एक माचिस मिल