आघात डॉ. कविता त्यागी 13 वहाँ से लौटकर तीन-चार दिन तक कौशिक जी का चित्त बहुत ही अशान्त रहा । अपनी इस आन्तरिक अशान्ति से उनका व्यवहार भी असामान्य- सा हो गया था । उस समय वे न किसी से कुछ कहना चाहते थे, न कुछ सुनना चाहते थे । यहाँ तक कि खाने-पीने के सम्बन्ध में भी कुछ नहीं कहते थे । जो कुछ, जैसा भी खाने-पीने के लिए दिया जाता था, चुपचाप जीवित रहने भर के लिए खा लेते थे, शेष वापिस छोड़ देते थे । चार-पाँच दिन पश्चात् जब उनका चित्त कुछ शान्त हुआ, तब उन्होंने घर