आघात डॉ. कविता त्यागी 12 पिता के शब्दों का अवलम्ब ग्रहण करके पूजा कुछ प्रकृतिस्थ हो गयी और ससुराल जाने के लिए तैयार होने लगी । यह जानते हुए भी कि उनकी बेटी ससुराल में कष्टप्रद जीवन जी रही है, माता अपनी बेटी को ससुराल में भेजने के लिए विवश थी । माँ की आँखो से आँसू बहने अभी भी बन्द नहीं हुए थे । ऐसा लग रहा था मानो एक माँ अपने हृदय की पीड़ा को आसुँओं के बहाने बाहर निकालने को प्रयास कर रही थी । उस पीड़ा को, जिसको वह शब्दों में व्यक्त करने की क्षमता नहीं