बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 14 दिल्ली स्कूल ऑफ़ क्रिटिसिज़्म और वापसी जैसा कि मैंने पहले कहा, अब तक दिल्ली स्कूल ऑफ़ क्रिटिसिज़्म कायम हो चुका था। मैं इसका एक अंग बनने जा रही थी। डॉक्टर साहब की आलोचना प्रणाली को समझने का मैं हरसंभव यत्न करती। अब मैं सुबह जल्दी ही यूनिवर्सिटी आ जाया करती और डॉक्टर साहब की एम.ए. की कक्षायें अटैंड करती। इसकी मैंने उनसे अनुमति ले रखी थी। इसका लाभ मुझे यह होता कि ये कक्षायें मुझे संरचनावाद और रूपवाद को समझने में मदद करतीं। फिर डॉक्टर साहब के पढ़ाने का ढंग