बाद मुद्दत के वह पुरानी रात लौटी... दफ़्तर में दूसरा दिन धूसर-सा बीता। अनिद्रा का प्रभाव तो था ही, पिछली रात की बातों का अवसाद भी अंतरात्मा पर छाया था। उस बालक की आत्मा ने जो कुछ कहा/बताया था, उसका बहुलांश तो मेरे लिए भी अजाना था। शैलेन्द्र ने मुझसे सिर्फ घटना का उल्लेख किया था और अपनी त्रासद आंतरिक पीड़ा की बात बतायी थी। आत्मा ने तो पूरी घटना का सत्य सबके सामने उजागर कर दिया था, उसने अपने पुनर्जन्म की बात और शरीर छोड़ने के बाद कुछ बोलने की चेष्टा की बात कहकर मुझे भी आश्चर्य में डाल दिया