क्या बने बात, जो बात बनाये न बने...दफ्तर की छुट्टी के बाद ईश्वर भी 'बाबा भूतनाथ' के कमरे पर आये। हम तीनों मित्रों के बीच आज की घटना पर बातें होने लगीं। दोनों एकमत थे कि इस मामले में मैं और अधिक न पडूँ। मैं तो इस आसमान में और उड़ना चाहता था, लेकिन मित्र-बंधु थे कि हाथ खींच लेने की सलाह दे रहे थे। गंभीर मनोमंथन और विमर्श होता रहा। शाही का कहना था कि 'तुम्हारी सूचना के आधार पर अगर दिवंगता के पिता ने पुलिस केस कर दिया तो बड़ी परेशानी हो जायेगी। तुम्हारी हस्तलिखित चिट्ठी ही साक्ष्य बन जाएगी और पुलिस की पूछताछ के दायरे