"पड़ोसी की रात मौत हो गयी है, एक बार उनकी लकड़ी में चले जाना!" सुबह हुई ही नही थी कि विनय के कानों पर उसकी माँ सुहासिनी की आवाज पड़ी। विनय की उम्र लगभग अठारह वर्ष की हो गयी थी। इससे पहले आजतक कभी वो श्मशान नही गया था। चूंकि आज उसके पिताजी किसी कारणवश बाहर गए हुए थे, तो आज उसे ही उनकी अंतिम यात्रा में शरीक होना था। विनय उठा और नित्य कर्म करने के बाद नाश्ता किया और सफेद कुर्ते पायजामा पहन पड़ोस में जाने के लिए निकल पड़ा। हालांकि पड़ोसी से उसकी अच्छी बनती नही है,