1)ऐसा ज़रूरी नहीं, राह का हर व्यक्ति हँस कर मिलें, कोई गले मिलकर, थोड़ा सा रो दें, और कुछ न कहें। यहाँ पर वो ख़ुशियाँ हर वक़्त क़िस्मत में ना भी मिलें, मगर कोई साथ चलकर हिम्मत देने की बात तो कहें। इस अनचाहे सफ़र में वो शख़्स हर एक मोड़ पर मिलें,वो मुझसे इश्क़ करे या दोस्ती, मगर कोई बात तो कहें। ज़माने की परवाह करके वो आज छत पर ना भी मिलें, मैंने चाँद के इंतज़ार में घर सजाया, सब उसे मंदिर कहें। टूटें हुए मकाँ से कुछ आवाज़ तुम्हारी राहों पर भी मिलें, शहर का शोर कुछ