ख़ामोश प्यार।

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लो समय आ गया बिछड़ने काकर न सके हम कुछ अपनी बात।गई शाम आ गया प्रभात फैली अरूणिम आभा चहुं ओर। स्वर्णमय हो गया संसारऐसे सुंंदर अवसर परलो समय आ गया बिछुड़ने का।पहल कभी न की मैंनेमुझमें भी थी लोक ल।ज।तुम भी मुझसे कह न सकेतुम में भी था गर्व अभि मान।इसी कशमकश में कट गए दिनरह गई दिल की दिल में बात।लो समय आ गया बिछुड़नें काकर न सके हम कुछ अपनी बात।भुला न सकूंगी मैं तुमकोलौट के तुम जल्दी।तुम बिन बिंदिया सूनी हैमैं भी तुम बिन अधूरी हूं।फिर कैसे कहूं तुम्हे जाने कोक्या कहूं इस आने को।ऐसी विषम