निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 11

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कानपुर-प्रवास के जोड़ीदार--शाही और ईश्वर आगे की कथा कहने के लिए थोड़ी भूमिका अपेक्षित है। लेकिन आप यह न समझें, मैं कोई अवांतर कथा कहने लगा हूँ। जिनका उल्लेख कर रहा हूँ, वे सभी आगे चलकर इस परलोक चर्चा के महत्वपूर्ण पात्र सिद्ध होंगे।… कानपुर-प्रवास में जीवन एक ढर्रे पर चल पड़ा था। सप्ताह के पांच दिन दफ्तर में, काम की भीड़-भाड़ में और मित्रों के सान्निध्य में व्यतीत हो जाते तथा दो दिन श्रीलेखा-मधुलेखा दीदी के पास। बैचलर क्वार्टर तो लघु भारत ही था, वहाँ देश के हर प्रदेश के प्रतिनिधि आ बसे थे। वे टोलियों में बँटे हुए