महत्वाकांक्षा टी शाशिरंजन (1) साक्षात्कार के बाद कोलकाता से खुशी खुशी मैं वापस लौट रहा था । राजधानी एक्सप्रेस के प्रथम श्रेणी के जिस केबिन में मैं चढा, उसमें पहले से एक और आदमी मौजूद था । जल्दी ही पता चला कि वह मेरी सीट पर बैठा है। मैने उसे कहा भाई साहब आप अपनी सीट पर नहीं हैं । यह मेरी सीट है । उसने मेरी ओर देखा और शायद क्षमाप्रार्थी होते हुए दूसरी सीट पर चला गया । गाड़ी चल पड़ी । तबतक मैने अपना सामान भी सेट कर लिया था। मेरे मन में एक अजीब प्रकार की