सच कुछ और था......

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सच कुछ और था...... सुधा ओम ढींगरा यह कहानी मैंने लिखी नहीं, इस कहानी ने मुझे से स्वयं को लिखवाया है। ताज्जुब की बात है, पता नहीं कहाँ से यह मेरी कलम पर आ बैठी है..... और पहुँच गई है एक वृद्ध दंपति के घर में और लगी है ताँक-झाँक करने उनके घर के भीतरी कमरों में ......अजी, आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि, मैंने मना नहीं किया। बहुत मना किया। मेरी सुने तो! वास्ता दिया किसी के घर में झाँकना गलत है, इस देश में तो कानूनन अपराध है, पर कहाँ मानी.... सुबह-सुबह उस वृद्ध दंपति के घर का