शनिवार को श्रीमती जी द्वारा लगातार अनुरोध करने व रात डिनर न मिलने के भय को देखते हुये मैं उनके साथ दीवाली की बाज़ारी रौनक देखने के लिये चल पड़ा । बाज़ार में हर तरफ दुकानें पूरी तरह से सजी हुई अपने भोले - भाले दुल्हों का स्वागत कर रहीं थी । मैं बाज़ार के सौंदर्य से अभिभूत हो ही रहा था कि श्रीमती जी ने कोंचा - ‘ उधर क्या देख रहे हो ? इधर देखो, सिल्क की साड़ियों की सेल लगी है । ‘ मैं अपनी जेब संभालता हुआ बुदबुदाया - ‘चल भइये, अब तेरी खैर नहीं ।