निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... - 9

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पिताजी की वर्जना और चालीस दूकान की आत्मा... 'कहेगा कौन-सा अलफ़ाज़ उस रात की दास्ताँ, माँ, जब तुम थीं, मैं था और आँख के आंसू मेरे...!' उस रात की वार्ता में जितना वक़्त लगा, माँ से उतनी बातें नहीं हुईं। कारण यह कि ग्लास की गति बोर्ड पर बहुत मंथर थी। मेरे एक प्रश्न के उत्तर के वाक्य बनने में खासा वक़्त लग रहा था। लेकिन इतना तय था कि बात माता से ही हो रही थी और वह बहुत महत्त्व की थी। महत्त्व की इसलिए कि माँ उस दिन मेरे प्रश्न के उत्तर में नहीं, बल्कि स्वयं ऐसे वाकये