मुख़बिर - 26

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मुख़बिर राजनारायण बोहरे (26) एलादी बारह वरस की तपस्या से भोले बाबा शंकर भागवान एलादी की भक्ति से प्रसन्न हो गये और एक दिन ग्वाले का वेष बना कर एलादी के पास पहुंचे । वे एलादी से बोले -बहन, तुम रोज-रोज मिट्टी के शिवलिंग काहे बनाती हो, सासक्षात शिवजी की पूजा काहे नहीं करतीं! एलादी बोली-साचात शिवजी कहां मिलेंगे ? ग्वाला वेष धारी शंकरजी बोले -ऊपर पहाड़ पर शंकर जी की मूर्ति है वहां जाओ । एलादी पहाड़ के ऊपर पहुंची और चारों ओर शिवजी की पिंडी ढूढ़ने लगी । लेकिन पहाड़ी पर शिवजी की कोई पिंडी नहीं थी ।