राय साहब की चौथी बेटी - 2

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राय साहब की चौथी बेटी प्रबोध कुमार गोविल 2 इंसान ज़िन्दगी में जो कुछ भी करता है वो लोगों के लिए! लोग क्या कहेंगे, लोग क्या सोचेंगे... और ये नामुराद "लोग" ही कभी - कभी नज़र लगा देते हैं। कुछ का कुछ हो जाता है। अगर किसी के साथ कुछ अच्छा हो रहा हो तो इन "लोगों" की ही आंखें फ़ैल जाती हैं। इंसान इनकी कुढ़न - ईर्ष्या से बिगड़े काम को अपना नसीब मान कर चुपचाप बैठ जाता है। आख़िर करे भी तो क्या? लेकिन इसमें लोगों का क्या दोष? अगर अच्छा हमारे नसीब से हो रहा है तो बुरा