कौन दिलों की जाने! बारह बसन्त पंचमी से एक दिन पहले सायं पाँच बजे तक रानी की ओर से पटियाला आने, न—आने के बारे में जब कोई समाचार नहीं आया तो आलोक अन्दर—ही—अन्दर बेचैनी अनुभव करने लगा। एक बार तो उसके मन में आया कि फोन करके पता करूँ, लेकिन दूसरे ही क्षण पच्चीस जनवरी को रानी की कही बात स्मरण हो आई, जब उसने चाहे स्पष्ट रूप में तो मना नहीं किया था, किन्तु कोई पक्का आश्वासन भी नहीं दिया था। आखिर सात बजे के लगभग रानी का फोन आया। देर से फोन करने के लिये क्षमा माँगते हुए