एक जिंदगी - दो चाहतें - 33

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एक जिंदगी - दो चाहतें विनीता राहुरीकर अध्याय-33 शनिवार शाम को मौसी-मौसाजी वापस चले गये क्योंकि उन्हें रविवार सुबह ही किसी कार्यक्रम में जाना था। बुआ-फूफाजी भरत भाई के यहाँ चले गये। दोनों नौकरों ने पूरा घर साफ करके हर कमरा व्यवस्थित कर दिया। सावित्री और तनु ने पूजा घर का सारा सामान समेटा और ठीक से संभालकर ड्रावर में रख दिया। 'यहाँ अब इस सब का क्या काम, ये पूजा का सामान तो आप ही ले जाओ चाची। परम ने उन्हें सामान ड्रावर में रखते देखा तो कहा। 'अरे घर-गृहस्थी है। तीज-त्यौहार, पूजा-अनुष्ठान तो चलते ही रहेंगे। घर में