बेबस आंखें सब कुछ , देखती हैं आंखें - प्रियतम का इंतज़ार करती प्रेमिका को मीनार शिखर पर बांग देते हये पवित्र मौलवी को भीख मांगते , मासूम बच्चों को आत्महत्या करते गरीब अन्नदाताओं को रोज़गारों के अभाव में , भीड़-तंत्र का हिस्सा बनते होनहारों को सड़क पर कुचली , लावारिस लाश को नगर की गडम - गडड स्थिति को और डर के मारे प्लायन करते लोगों को आशीर्वाद के बहाने , कोमलांगियों को फांसते ढ़ोंगी पंडितों को जाति व धर्म के नाम पर वोट मांगते नेताओं को बेकसूरों पर कोड़़े बरसाती मदांध पुलिस को ईमान का सौदा करते