कौन दिलों की जाने! नौ मकर संक्रान्ति मौसम ने करवट बदली। कुछ दिन पहले तक जहाँ सर्दी की जगह गर्मी का अहसास होने लगा था, अब दो—तीन दिन से पहाड़ों पर बर्फबारी होने से शीत—लहर चलने लगी थी। पहली बार साँस छोड़ते हुए नाक—मुँह से भाप निकलने लगी थी। संजना को विदा करने तथा रमेश व लच्छमी के जाने के पश्चात् रसोई का बचा—खुचा काम समेट कर रानी टी.वी. ऑन करके रजाई में दुबक गई। क्योंकि बर्फीली हवाओं के कारण हाथ—पैर ठिठुर रहे थे, अतः लॉबी या ड्रार्इंगरूम में बैठकर पढ़ना अथवा कोई और काम करना सम्भव न था। बारह—एक