रोजी की राह्गिरी (11) आसमान में छलांग यूँही अनुराग से मिलते उसके प्रेम में भीगते डूबते-उतरते ऐसे ही जीवंत दिन बीत रहे थे कि मुझे अपनी देह में कुछ बदलाव महसूस हुए थे. एक सुबह मुझे कुछ भारी-भारी सा लगा बदन में. उस दिन अनुराग से शाम को उसके होटल के कमरे में मिलना तय था. उसने काम की वजह से ले रखा था. जब उसे पार्टी में या काम में देर हो जाती या शराब ज़्यादा हो जाती तो वह वेस्ट दिल्ली के अपने घर तक ड्राइव कर के जाने की असुविधा से बचने के लिए इस कमरे में