निम्मी की राह्गिरी (9) वो छिप छिप कर मिलना दोनों डब्बे उठाये अनुराग के बारे में सोचती मैं घर चली आयी थी. घर आ कर माँ को मिठाई वाला डब्बा थमा दिया था. दूसरा खुद अपने बक्से में रख लिया. सारी मिठाई भाई, पापा और माँ ने उसी वक़्त खा ली थी. भाइयों ने ये कह कर मजाक उड़ाते हुए कि तू तो वहां खा कर ही आयी है. लेकिन मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा था. न ही इच्छा हुयी थी उस मिठाई को खाने की. मेरा मन और पेट दोनों भरे हुए थे. मैं तो उस रात अनुराग के