मेरी एक छोटी सी कविता स्त्रियों पर आधारित है ईश्वर ने उन्हें बनाया है जिस प्रकार से वह केवल उसी प्रकार से रहना ही पसंद करती हैं परंतु समाज के अव गुणों के कारण कितना कुछ सहन करती हैं।मेरी कविता यही दर्शाती है आशा है कि आप सभी को पसंद जरूर आएगी......????????????????हाँ मैं एक स्त्री हूँ "मोहब्बत" तो मैं करूँगी।हाँ मैं एक स्त्री हूँ तो क्या "जलती" ही रहूँगी।।मौन हूं पर "डरपोक" तो बिल्कुल भी नहीं हूँ।रोती हूं पर "टूटी" तो मैं बिल्कुल भी नहीं हूँ।।हार और जीत मेरे लिए मायने नहीं रखते हैं।पर फिर भी मैं "जीना" तो नहीं