निश्छल आत्मा की प्रेम-पिपासा... (३) जब मैंने किशोरावस्था की दहलीज़ लांघी और मूंछ की हलकी-सी रेख चहरे पर उभर आई, तो चाचाजी मेरे प्रश्नों के संक्षिप्त और संतुलित उत्तर देने लगे। उनके पास कथाओं का अंबार था--अनुभूत सत्य से भरी कथाएं--रोमांचक! फिर भी वह आत्माओं से संपर्क के अपने अनुभव बतलाते हुए अपनी वाणी को संयमित रखते। उतना ही बताते, जितना बतलाना उचित समझते। इस विद्या के उनकी गति बहुत थी। उनके निर्देश पर आमंत्रित आत्माएं स्वयं उत्तर दे जाती थीं, पेन्सिल स्वयं खड़ी होकर प्रश्नों के उत्तर कागज़ पर लिख जाती, कोकाकोला के टिन के ढक्कन समस्याओं के समाधान