चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख - 2

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चिंदी चिंदी सुख थान बराबर दुःख (2) उसने थोड़ा सा खाना भी खा लिया | मै अपने साथ घर से उसका भी खाना लाती थी, काफी देर तक मौन पसरा रहा | कोई कुछ नहीं बोला | मेड बाहर जा कर बैठ गई | आज सन्नाटा था सिर्फ रूपा और मै ही थी मैने उससे कहा - '' अब अगर बताना चाहो तो बताओ क्या हुआ क्यों परेशान हो तुम ? रो कर आई थी न किसी ने कुछ कहा क्या ? '' '' क्या बताऊँ कहाँ से शुरू करूँ दीदी | यह सब मेरी फूटी किस्मत ही तो है